Saturday, February 20, 2010
नक्सलवादः घरेलू आतंकवाद
प्रणब दाः कोई गुडलक निकालों....
26 पफरवरी को यूपीए के वित्तमंत्राी प्रणब मुखर्जी एक बार पिफर देश की जनता के बीच बजट का पिटारा लेकर आने वाले हैं. आम बजट को समर्पित इस तारीख का देश के सभी तबकों में शिद्दत से इंतजार किया जा रहा है. इसकी वजह बेबस और लाचार बना देने वाली वह महंगाई है, जिसने पिछले कुछ महीनों में आम आदमी के घरेलू खर्च को पूरी तरह से चरमरा दिया है. ऐसे में महंगाई से निजात पाने के लिए हर कोई प्रणब दा के पिटारे के खूलने की राह देख रहा है, ताकि उस पिटारे में से उसके लिए कोई राहतभरी सौगात निकले. देश में खाघ पदार्थो की कीमतें आसमान छू रही है, सब्जियां आम आदमी के लिए त्यौहारों पर बनाए जाने वाले व्यंजनों की तरह हो गई है. शक्कर की कीमतों में उछाल का यह आलम है कि आजकल तो घर आए मेहमान को चाय का पूछने की हिम्मत भी नहीं होती. ऐसे में आम आदमी इस बात की उम्मीद लगाए बैठा है कि प्रणब दा उसके किचन के खर्चे को कर दें, उसकी चाय में थोड़ी मिठास घोल दे.
लेकिन क्या ऐसा सच में हो पाएगा? और पिफर, ये वहीं मुखर्जी हैं, जो पिछले साल बजट लाए थे, तो दलाल स्ट्रीट औंध्े मूंह गिर गया था. चंद घंटों के भीतर शेयर बाजार ने चैबीस लाख करोड़ रूपए की चपत खाई थी. तब प्रणबदा का बजट आम आदमी, उद्योगपतियों और रईस तबके किसी को नहीं भाया था. तो पिफर ऐसे में भला अब उनसे किस आधर पर राहत की उम्मीद लगाएं ?
पिफर भी, आम आदमी उम्मीद लगाएं बैइा हैं, तो सिपर्फ इसलिए कि इस महंगाई में तो घर चलाना उसके बूते के बाहर की बात है. उसके पास दूसरा केाई विकल्प ही नहीं है, इसके सिवाय की वह प्रणबदा के पिटारे की ओर ऐसे देखे, मानों उसमें से कोई जिन्न निकलेगा, जो महंगाई के भूत को अरब अमीरात के तेल के कुंओं में दपफन कर आएगा. इसीलिए वह चाहता है कि प्रणब दा उसके बारे में सोचे. देश के आम आदमी के बारे में सोचे. भारतीय लोकतंत्रा में ज्यादातर वित्तमंत्राी यह पंरपरा निभाते आए हैं कि बजट पेश करने से पहले वे देश के सभी शीर्ष औद्योगिक घरानों, उद्योगपतियों से राय-मशविरा करते हैं, ताकि उनकी समस्याओं को सुनकर उनका निदान किया जाए. लेकिन अब इस परिपाटी को बदलने का वक्त आ गया है. देश का आम आदमी उम्मीद लगाए बैठा है कि वित्तमंत्राी उनके घरों में आकर उनकी समस्याएं पूछे. पूछे कि दो वक्त का भोजन जुटाना उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी चुनौती क्यों बन गया है? पूछे कि वह अपने बच्चों की परवरिश ठीक से क्यों नहीं कर पा रहा है? पूछे कि क्यों उसके जेब में किसी भी त्यौहार, शुभ अवसर के लिए पैसा क्यों नहीं होता?
सच में, देश का आम आदमी प्रणबदा से यही उम्मीद लगाए बैठा है. काश, प्रणबदा को भी इस उम्मीद की आहट सुनाई दे. काश उनके पिटारे से आम आदमी के लिए जिन्न जैसा कुछ निकल आए, जो उनकी सारी तकलीपफें दूर कर दें. काश प्रणबदा के पिटारे से कोई गुडलक निकल आए....