Saturday, February 20, 2010

नक्सलवादः घरेलू आतंकवाद



देश के ज्यादातर राज्यों को अपनी चपेट में ले चुका नक्सलवाद अब तेजी के साथ आतंकवाद में तब्दील होता जा रहा है. पिछले कुछ दिनों में बिहार और पश्चिम बंगाल में हुई नक्सली हिंसा ने इस बात को पूरी तरह से सही साबित भी कर दिया है. पश्चिम बंगाल के सिल्दा में नक्सलियों ने सेना के कैंप पर हमला करके चैबीस जवानों को मौत के घाट उतारा, वहीं बिहार के जुमई में एक गांव पर हमला करके बारह ग्रामीणों की जान ले लीं. कुछ ही दिनों के भीतर हुई ये नक्सली हिंसा भयावह है.
लेकिन रूकिए, भयावह सिर्फ हिंसा ही नहीं है, हिंसा का तरीका भी है. असल में यह तरीका भयावह ही नहीं, भारत सरकार की आंखों की नींद उड़ा देने वाला भी है. इसकी वजह, नक्सली हिंसा को अंजाम देने का नक्सलियों का वह तरीका, जो सबको हैरान कर रहा है. हमारी सुरक्षा एजेंसियां कह रही है कि सिल्दा में जो नक्सली हमला हुआ, उसमें महिलाएं शामिल थी. इतना ही नहीं, इस पूरी कार्रवाई को अंजाम देनें की जिम्मेदारी भी एक महिला के हाथों में थी. इसी तरह, बिहार के जुमई में गांव पर जो नक्सली हमला हुआ, उसकी कमान बच्चों के हाथों में थी. चैदह साल की कम उम्र के इन बच्चों ने दर्जनभर से भी ज्यादा गांववालों को मौत के घाट उतार दिया. इसके साथ ही नक्सलियों ने भारत सरकार को यह साफ संकेत दे दिया कि वह अपनी रणनीति में बदलाव ला चुकी है.
हैरानी इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि कुछ अरसा पहले हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने ही यह खुलासा किया था कि नक्सली देश के अलग-अलग हिस्सों में महिलाओं और बच्चों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. इस खुलासे के बाद बवाल तो खूब मचा था, लेकिन ठोस कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. बिहार और पश्चिम बंगाल में हुई नक्सली हिंसा से तो यही संकेत मिलता है कि हम भले हीे पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर काबू पाने का दंभ भरते हों, लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि हम देश के भीतर ही नक्सलियों से नहीं निपट पा रहे हैं. महज चुनावों की खानापूर्ति करके सरकार अपनी जिम्मेदारी से मूंह नहीं मोड़ सकती. न ही हिंसा के बदले हिंसा की राह अपनाकर इस घरेलू आतंकवाद से निपटा जा सकता है.
इसके लिए साझा प्रयासों की जरूरत है. जरूरत है कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार के साथ मिलकर इस समस्या का हल ढूंढे. जरूरत इस बात की है कि वोट बैंक को किनारे रखकर देश की आंतरिक सुरक्षा में आ गई इस बड़ी दरार को बूझने का काम किया जाए.
अफसोस कि यह होता नहीं दिखता. गृहमंत्री पी चिदंबरम के बयानों से तो कम से कम यही लगता है. जनाब कभी नक्सलियों से बातचीत की बात करते हैं, तो कभी उन्हें धमकाते हैं. इन्दौर में हुए भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाॅ रमनसिंह ने यह बड़े गर्व के साथ कह दिया कि हमारे राज्य में हम नक्सलवाद पर काबू पाने में कामयाब हो गए हैं. रमनसिंह यह बात चुनावी नतीजों के आधार पर कह रहे थे, लेकिन इस बीच वे यह आसानी से भूल गए कि छत्तीसगढ़ में वोट डालने वाले मतदाताओं का प्रतिशत चालीस भी पार नहीं कर पाया था. जाहिर है, वक्त बयानबाजी का नहीं, कार्रवाई का है.

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